Vidhu Vinod Chopra | फिल्ममेकर के रूप में मेरा काम दुनिया को थोड़ा बेहतर बनाना है: विधु विनोद चोपड़ा

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विधु विनोद चोपड़ा की फोटो (Photo – Instagram)

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नई दिल्ली : फिल्म निर्माता विधु विनोद चोपड़ा (Vidhu Vinod Chopra) का मानना है कि फिल्मों को किसी व्यावसायिक मॉडल की तरह नहीं, बल्कि बदलाव के स्रोत के रूप में काम करना चाहिए। चोपड़ा ‘12वीं फेल’ (12th Fail) के साथ तीन साल बाद बड़ी स्क्रीन पर वापसी कर रहे हैं। यह फिल्म महत्वाकांक्षाओं, समर्पण और असफलताओं से पार पाने की कहानी दर्शाती है। ‘खामोशी’, ‘परिंदा’, ‘1942 : ए लव स्टोरी’ और ‘मिशन कश्मीर’ जैसी फिल्मों के लिए जाने जाने वाले चोपड़ा ने कहा कि उन्होंने कभी पैसों को दिमाग में रखकर रचनात्मक फैसले नहीं किए।

विधु विनोद चोपड़ा ने मीडिया से एक साक्षात्कार में कहा कि एक कलाकार या फिल्म निर्माता के रूप में उनका काम दुनिया को पहले से थोड़ा बेहतर बनाना है। उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए अगर मैं ऐसी फिल्म बना सकता हूं, जो लोगों के जीवन में थोड़ा सा बदलाव ला सके, तो इससे मुझे प्रेरणा मिलती है। पैसे ने मुझे कभी प्रेरित नहीं किया। मैं ‘मुन्नाभाई’ 3, 4, 5, 6… बना सकता था और करोड़पति बन सकता था, जो कि मैं नहीं हूं। मैंने विक्रांत मैसी के साथ ‘12वीं फेल’ बनाने का फैसला किया।”

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इस उपन्यास पर बेस्ड है फिल्म 

चोपड़ा ने कहा, ‘‘मैंने ‘परिंदा’ में हिंसा के बारे में बात की। ‘1942 : ए लव स्टोरी’ देशभक्ति पर आधारित थी और ‘मिशन कश्मीर’ धार्मिक विभाजन पर… मेरी सभी फिल्मों के लिए यह आवश्यक है कि वे कोई संदेश दें।” ‘12वीं फेल’ आईपीएस (भारतीय पुलिस सेवा) अधिकारी मनोज कुमार शर्मा और आईआरएस (भारतीय राजस्व सेवा) अधिकारी श्रद्धा जोशी की कहानी है। यह अनुराग पाठक के सबसे ज्यादा बिकने वाले उपन्यास पर आधारित है। फिल्म में मेधा शंकर के साथ मैसी मुख्य भूमिका में हैं।

66 साल की उम्र से लिख रहे थे फिल्म 

विधु विनोद चोपड़ा ने आगे कहा, ‘‘जब मैं 66 साल का था, तब मैंने यह फिल्म लिखनी शुरू की थी और अब मैं 71 साल का हूं। आप इस तरह की फिल्म कुछ महीनों में नहीं लिख सकते। इसमें वर्षों लग जाते हैं, क्योंकि हर किरदार की एक कहानी होती है। यह किसी की जीवनी नहीं है। यह हम में से हर एक की कहानी है…।” उन्होंने कहा कि यह फिल्म ‘‘जीवन में फिर से शुरुआत” करने के विचार पर आधारित है। चोपड़ा ने कहा, ‘‘मेरी पत्नी और बच्चों के अलावा मेरा भाई दुनिया में मेरा सबसे करीबी था। वैश्विक महामारी के दौरान, जब मैं इन फिल्म पर काम कर रहा था, उस समय वह मालदीव में था। उसने मुंबई आने में देरी कर दी और वह जीवित नहीं बच सका। इसने मुझे बहुत प्रभावित किया।”

वीडियो गेम की तरह है जीवन 

उन्होंने कहा, ‘‘करीब एक सप्ताह में मुझे एहसास हुआ कि (इस तरह प्रभावित होना) मेरे आसपास के लोगों के लिए उचित नहीं है। मैं पहले से ही कहानी पर काम कर रहा था और फिर से शुरुआत करने की पूरी अवधारणा तभी मेरे दिमाग में आई।” चोपड़ा ने कहा कि इस व्यक्तिगत क्षति से उबरने के दौरान उन्हें एहसास हुआ कि जीवन एक वीडियो गेम की तरह है, ‘‘आप हारते हैं, एक बटन दबाते हैं और फिर आगे बढ़ते हैं।” (एजेंसी)



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