Pocket forest trend increased in five continents | बड़े जंगलों की तुलना में इनकी ग्रोथ 10 गुना तेज, ये क्लाइमेट चेंज के खिलाफ सीक्रेट वेपन

[ad_1]

वॉशिंगटनएक घंटा पहले

  • कॉपी लिंक

पॉकेट फॉरेस्ट (छोटे शहरी जंगल) को टाइनी या मिनी फॉरेस्ट भी कहा जाता है।

एशिया, साउथ अमेरिका, नॉर्थ अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका के कई देशों जैसे- भारत, जापान, रूस में टाइनी, मिनी या पॉकेट फॉरेस्ट (छोटे शहरी जंगल) कवर साल-दर-साल बढ़ रहा है। ग्लोबल वॉर्मिंग के दौर में सिकुड़ते जंगलों की खबरों के बीच आपको ये बात राहत भरी लग सकती है। लोग पार्किंग एरिया, स्कूल के ग्राउंड्स और कबाड़खानों को छोटे जंगलों में तब्दील कर रहे हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, इसका फायदा ये हो रहा है कि बड़े जंगलों की तुलना में छोटे जंगलों की ग्रोथ 10 गुना तेज होती है। ये 30 गुना घने होते हैं और 100 गुना ज्यादा जैव विविधता (बायोडायवर्सिटी) वाले होते हैं। यानी ये आसानी से कार्बन डाइऑक्साइन एबजॉर्ब कर लेते हैं। साथ ही वाइल्ड लाइफ को भी सपोर्ट करते हैं।

खास बात को ये है कि टाइनी फॉरेस्ट को शुरुआती 3 साल तक ही पानी देने की जरूरत होती है। इसके अलावा शहरी इलाकों में टाइनी फॉरेस्ट गर्म तापमान को कम करने में भी मददगार साबित हो रहे हैं। यानी छोटे जंगल वातावरण को ठंडा रख रहे हैं।

DW के मुताबिक, एक छोटा जंगल साल में 127.5 किलो CO₂ सोखता है।

DW के मुताबिक, एक छोटा जंगल साल में 127.5 किलो CO₂ सोखता है।

ये छोटे शहरी जंगल क्लाइमेट चेंज के खिलाफ सीक्रेट वेपन
इकोलॉजिस्ट्स का कहना है कि छोटे जंगल जापानी इकोलॉजिस्ट अकीरा मियावाकी की बंजर जमीन पर छोटे, घने शहरी जंगल बनाने की तकनीक से प्रेरित हैं। जो प्रजातियां इन जंगलों में उगाई जाती रही हैं, उनके सफल होने और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने की संभावना होती है। इसके लिए मिट्टी की स्थिति भी अहम होती है।

इसे आसान शब्दों में ऐसे समझें, ह्यूमन एक्टिविटीज के कारण धरती के वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन हो रहा है। इससे तापमान बढ़ रहा है। जिसे ग्लोबल वॉर्मिंग कहा जाता है। इसके चलते जंगलों में आग लग रही है और पेड़ खत्म हो रहे हैं। दूसरी तरफ पेड़ों की कटाई भी तेजी से हो रही है। इससे बायोडायर्सिटी को होने वाला खतरा बढ़ रहा है। ऐसे में ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए जाने की जरूरत है। पॉकेट फॉरेस्ट के ट्रेंड इस जरूरत को पूरा कर रहा है। इससे कार्बन डाइऑक्साइड एबजॉर्बशन बढ़ रहा है। इसलिए इसे क्लाइमेट चेंज के खिलाफ सीक्रेट वेपन के रूप में देखा जा रहा है।

हम एनर्जी के लिए फॉसिल फ्यूल्स जलाते हैं। इससे हर साल दुनिया भर से 4000 करोड़ टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन (कार्बन एमिशन) होता है, जो ग्लोबल वॉर्मिंग की सबसे बड़ी वजह है।

हम एनर्जी के लिए फॉसिल फ्यूल्स जलाते हैं। इससे हर साल दुनिया भर से 4000 करोड़ टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन (कार्बन एमिशन) होता है, जो ग्लोबल वॉर्मिंग की सबसे बड़ी वजह है।

ये साधारण पौधारोपण नहीं है
लॉस एंजिलस में ग्रिफिथ पार्क (टाइनी फॉरेस्ट) की देखरेख करने वाली कैथरीन ने कहा- टाइनी फॉरेस्ट का कॉनसेप्ट ट्री-प्लांटेशन यानी पौधारोपण से काफी अलग है। हम सिर्फ सड़क किनारे पेड़ उगाने की बात नहीं कर रहे हैं, न ही टेरेस फार्मिंग के बारे में बात कर रहे हैं।

उन्होंने कहा- यहां फॉरेस्ट कवर बढ़ाने की बात हो रही है, बस छोटे-छोटे पैमाने पर। जहां, छोटे जीवों को लाइफ सपोर्ट मिल सके। ग्रिफिथ पार्क एक हजार वर्ग फीट में बना है। यहां छोटे-छोटे इंसेक्ट, चिड़िया, गिलहरियां रहते हैं। ये उनका घर है।

भारत सरकार के लिए आम के बगीचे भी जंगल
2001 से लागू नीति के मुताबिक अब किसी भी एक हेक्टेयर के क्षेत्र में अगर 10% हिस्से में पेड़ लगे हुए हों तो वो ‘जंगल’ मान लिया जाता है।

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये पेड़ कौन से हैं, किसी ने उगाए हैं या नैचुरल ग्रोथ है। जिस जमीन पर लगे हैं उसका इस्तेमाल क्या हो रहा है, उसका मालिकाना हक किसका है, ये भी नहीं देखा जाता।

इसका नतीजा ये है कि असम के चाय बागान हों या उत्तर प्रदेश में आम के बड़े बगीचे, या फिर दक्षिण के राज्यों में नारियल के प्लांटेशन…ये सभी अब जंगलों में गिने जाते हैं। इस नीति का फायदा ये है कि 2004 में भारत के कुल एरिया के 20.60% इलाके में फॉरेस्ट कवर था…और 2019-20 में ये बढ़कर 21.71% हो गया।

सिर्फ एक साल में दिल्ली से भी बड़े साइज का जंगल भारत में बढ़ गया
जनवरी, 2023 में केंद्र सरकार ने पर्यावरण से जुड़े आंकड़ों की रिपोर्ट EnviStats India जारी की। इस रिपोर्ट में देश के फॉरेस्ट कवर का भी राज्यवार विवरण दिया गया है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक 2017-18 में भारत का कुल फॉरेस्ट कवर 7,12,249 वर्ग किमी. था। एक ही साल यानी 2019-20 में यह फॉरेस्ट कवर 7,13,789 वर्ग किमी. हो गया। यानी 1540 वर्ग किमी. जंगल एक साल में बढ़ गए।

दिल्ली राज्य का क्षेत्रफल 1484 वर्ग किमी. है। अगर सरकारी आंकड़े सही हैं तो एक ही साल में भारत में दिल्ली के साइज से भी बड़ा जंगल बढ़ गया। 2004 में यह फॉरेस्ट कवर 6,90,171 वर्ग किमी. ही था। 2020 तक यानी 16 साल में यह 23,618 वर्ग किमी. बढ़ गया। मेघालय राज्य का क्षेत्रफल 22,429 वर्ग किमी. है। यानी 16 साल में मेघालय के साइज से बड़ा जंगल भारत में खड़ा हो चुका है। इस रिपोर्ट में ये आंकड़े हर दो साल में जारी होने वाली इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट के हवाले से दिए गए हैं।

ये खबर भी पढ़ें…

पिछले साल हर मिनट 11 फुटबॉल मैदान बराबर जंगल खत्म:इससे 2.7 गीगाटन CO2 रिलीज हुआ, डीफॉरेस्टेशन में ब्राजील सबसे आगे

ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच की रिसर्च के मुताबिक- क्लाइमेट समिट COP26 में जो वादे किए गए थे, उनका उलट हो रहा है। पिछले साल स्विटजरलैंड के एरिया के बराबर जंगल काट दिए गए। 2022 में हर एक मिनट में 11 फुटबॉल ग्राउंड्स के बराबर फॉरेस्ट एरिया खत्म हुआ। पढ़ें पूरी खबर…

[ad_2]

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *