Kapil Sibal targets Vice President Dhankhar | सिब्बल बोले-उपराष्ट्रपति आज कोर्ट के फैसले पर सवाल उठा रहे: जब एक जज ने इंदिरा गांधी को अयोग्य कर दिया था, वो फैसला उन्हें स्वीकार था

नई दिल्ली14 मिनट पहले

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राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने शुक्रवार को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के ‘जज राष्ट्रपति को सलाह ना दें’ बयान पर आपत्ति जताई। सिब्बल ने कहा, ‘भारत में राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया होता है। राष्ट्रपति और राज्यपाल को सरकारों की सलाह पर काम करना होता है। मैं उपराष्ट्रपति धनखड़ की बात सुनकर हैरान हूं। काफी दुखी भी हूं। उन्हें किसी पार्टी की तरफदारी करने वाली बात नहीं करनी चाहिए।’

सिब्बल ने कहा, ‘लोगों को याद होगा कि जब इंदिरा गांधी के चुनाव के बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था, तो केवल एक जस्टिस कृष्ण अय्यर ने फैसला सुनाया था। इंदिरा को सांसद के पद से हटा दिया गया था। तब धनखड़ जी को यह मंजूर था, लेकिन अब सरकार के खिलाफ दो जजों की बेंच के फैसले पर सवाल उठाए जा रहे हैं।’

धनखड़ ने कहा था- अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं

दरअसल, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की उस सलाह पर आपत्ति जताई, जिसमें उसने राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समय सीमा तय की थी।

धनखड़ ने कहा कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिला विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24×7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। जज सुपर पार्लियामेंट की तरह काम कर रहे हैं।

सिब्बल बोले- देश को न्यायपालिका पर भरोसा सिब्बल ने कहा- आज के समय में अगर किसी संस्था पर पूरे देश में भरोसा किया जाता है, तो वह न्यायपालिका है। सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 142 की ताकत संविधान से मिली है।

ऐसे में अगर किसी को कोई परेशानी है तो वो अपने अधिकार का प्रयोग कर रिव्यू डाल सकते हैं। वे अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से सलाह भी मांग सकते हैं। अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को अधिकार देता है कि वह पूर्ण न्याय करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या फैसला दे सकता है।

विवाद सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से शुरू हुआ सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के केस में गवर्नर के अधिकार की ‘सीमा’ तय कर दी थी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा था, ‘राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है।’ सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के 10 जरूरी बिलों को राज्यपाल की ओर से रोके जाने को अवैध भी बताया था।

इसी फैसले के दौरान अदालत ने राज्यपालों की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल की तरफ से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सार्वजनिक किया गया।

धनखड़ ने पूछा- जज के घर नोटो का बंडल मिला, FIR क्यों नहीं हुई

राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने 17 अप्रैल को कहा था कि हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, जो कार्यकारी कार्य करेंगे, जो ‘सुपर संसद’ के रूप में भी कार्य करेंगे। उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है।’

‘लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार सबसे अहम होती है और सभी संस्थाओं को अपनी-अपनी सीमाओं में रहकर काम करना चाहिए। कोई भी संस्था संविधान से ऊपर नहीं है।’

‘जस्टिस वर्मा के घर अधजली नकदी मिलने के मामले में अब तक FIR क्यों नहीं हुई? क्या कुछ लोग कानून से ऊपर हैं। इस केस की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन जजों की इन-हाउस कमेटी बनाई है। इसका कोई संवैधानिक आधार नहीं है। कमेटी सिर्फ सिफारिश दे सकती है, लेकिन कार्रवाई का अधिकार संसद के पास है।’

‘अगर ये मामला किसी आम आदमी के घर होता, तो अब तक पुलिस और जांच एजेंसियां सक्रिय हो चुकी होतीं। न्यायपालिका हमेशा सम्मान की प्रतीक रही है, लेकिन इस मामले में देरी से लोग असमंजस में हैं।’

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उपराष्ट्रपति बोले- अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं: जज ‘सुपर संसद’ की तरह काम कर रहे

धनखड़ ने कहा कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिला विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24×7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। जज सुपर पार्लियामेंट की तरह काम कर रहे हैं। पढ़ें पूरी खबर…

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