Jammu and Kashmir was purchased from the British for 75 lakhs this is how the foundation of Article 370 was laid – India Hindi News

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5 अगस्त 2019 के बाद जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 बीते दिनों की बात हो गई। संविधान के इसी अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया था जिसे केंद्र सरकार ने खत्म कर दिया। इसके बाद 370 के समर्थकों को दूसरा झटका तब लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस कदम को सही ठहरा दिया। बता दें कि संविधान में इस अनुच्छेद को अस्थायी तौर पर शामिल किया गया था। एक समय पर इस क्षेत्र में युद्ध की स्थिति को टालने के लिए महाराजा हरि सिंह से समझौता किया गया था और संविधान को इस आर्टिकल को शामिल किया गया था। 

अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष शक्तियां और अधिकार दिए गए थे। इसमें प्रदेश का अलग संविधान, अलग झंडा और आंतरिक प्रशासन पर  नियंत्रण शामिल था। हालांकि विदेश, रक्षा, वित्त और संचार के मामलों को इसमें शामिल नहीं किया गया था। हालांकि जम्मू-कश्मीर को मिले इस विशेषाधिकार की जड़ बहुत पुरानी है। अंग्रेजों के शासनकाल में भी जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा मिला हुआ था। आइए समझते हैं कि आखिर आजादी से पहले जम्मू-कश्मीर का इतिहास क्या था। 

ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में 1846 से 1858 तक यह एक राजशाही प्रदेश था। यानी यह सीधा ईस्ट इंडिया कंपनी के नियंत्रण में नहीं आता था। यहां राजा का ही शासन होता था। हालांकि वह ईस्ट इंडिया कंपनी के कई आदेशों को मानता था। इसके बाद 1947 तक यह ब्रिटिश शासन में आ गया। पहले ऐंग्लो सिख युद्ध के बाद लाहौर संधि के दौरान अंग्रेजों ने युद्ध की क्षतिपूर्ति के लिए महाराज गुलाब सिंह से 75 लाख नानकशाही रुपये मांगे थे। पहले तो गुलाब सिंह ने इतनी रकम देने में असमर्थता  जताई लेकिन बाद में उन्होंने अंग्रेजों से जम्मू-कश्मीर को बचाने के लिए यह रकम दे दी। यह भी कहा जाता है कि गुलाब सिंह ने अंग्रेजों से जम्मू-कश्मीर को 75 लाख रुपये में खरीद लिया था। 

क्या था 75 लाख का सौदा
ब्रिटिश राज में भी जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता थी। तब भी रक्षा, विदेश और संचार के मामले ब्रिटिशर्स के अधीन थे। तब भी जम्मू-कश्मीर के बाहर के लोगों को यहां संपत्ति खरीदने का अधिकार नहीं था। हालांकि 1947 के बाद चीजें बदलीं। विभाजन के समय जम्मू-कश्मीर के शासक महाराजा हरि सिंह ने ना तो भारत के साथ जाने का फैसला किया और ना ही पाकिस्तान के साथ। हालांकि जब उन्होंने देखा कि पाकिस्तान की तरफ से आदिवासी आतंकियों का हमला होने लगा तो उन्हें पुनर्विचार करना पड़ा। उन्होंने दिल्ली से मदद मांगी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि इसके बदले में उन्हें विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने होंगे। हरि सिंह के सामने कोई और विकल्प भी नहीं था। ऐसे में उन्होंने स्वायत्तता को बरकरार रखने की शर्त पर  26 अक्टूबर 1947 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए।्

एक दिन बाद ही गवर्नर जनरल माउंटबैटेन ने इसको मंजूरी दे दी। 26 जनवरी 1950 को संविधान लागुू किया गया तो इसी विलय पत्र के दायरे में कहा गया कि राज्यों को संघ घोषित करने वाले आर्टिकल 1 और आर्टिकल 370 के अलावा संविधान का अन्य कोई हिस्सा जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होगा। हालांकि संशोधनों और अपवादों को लागू करने की बात इसमें कही गई थी लेकिन इसके लिए राज्य सरकार से सहमति लेने की जरूरत थी। इसके बाद 1951 में 75 सदस्यों की जम्मू-कश्मीर संविधान सभा का गठन किया गया। इसमें जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला भी शामिल थे। 

1956 में जम्मू-कश्मीर में अलग संविधान लागू किया गया। हालांकि इसे अपनाने के लिए एक घोषणा की गई जिसमें कहा गया कि जम्मू-कश्मीर राज्य भारत संघ का अंग है और रहेगा। हालांकि उसी दिन इस संविधान सभा को भंग भी कर कर दिया गया।  

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