European Companies Dump Toxic Ships on Bangladesh Beaches | HRW Report | 3 सालों में 520 शिप डंप किए; इससे लंग कैंसर, जानलेवा बीमारियां होने का खतरा

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ढाका18 मिनट पहले

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तस्वीर में बांग्लादेश के चटगांव में एक शिपयार्ड की है। यहां मजदूर जहाज को खिंचने एक लंबी रस्सी ले जाते हुए दिख रहे हैं।

यूरोप की मरीनटाइम कंपनियां पुराने हो चुके जहाजों को बांग्लादेश के समुद्र तटों पर डंप कर रही हैं। ये बेहद खराब हालत में हैं। इनसे वॉटर पॉल्यूशन बढ़ रहा है और ये लोगों के लिए भी खतरनाक साबित हो रहे हैं।

ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) का कहना है कि ये जहाज किसी जहर से कम नहीं हैं। इनकी हालत इतनी खराब है कि इनको शिपयार्ड तक ले जाने वाले और इनके पार्ट्स को अलग करने वाले वर्कर्स की मौत हो रही है।

अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, OSHE फाउंडेशन चैरिटी के डायरेक्टर रिपुन चौधरी का कहना है कि बांग्लादेशी तटों पर डंप की जाने वाली शिप में अजबेस्टो (अदह) नाम का खनिज होता है। इससे लंग कैंसर और कई जानलेवा बीमारियां हो सकती हैं।

खराब हो चुके जहाजों को सीताकुंड शिपब्रेकिंग यार्ड में छोड़ा जा रहा है। इस इलाके में कन्सट्रक्शन इंडस्ट्री तेजी से बढ़ रही है।

खराब हो चुके जहाजों को सीताकुंड शिपब्रेकिंग यार्ड में छोड़ा जा रहा है। इस इलाके में कन्सट्रक्शन इंडस्ट्री तेजी से बढ़ रही है।

बांग्लादेशी कंपनियां सिर्फ प्रोफिट के बारे में सोच रहीं
दूसरी तरफ, बांग्लादेश की शिपब्रेकिंग कंपनियां मजदूरों की सुरक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठा रही हैं।

बांग्लादेश के सीताकुंड तट पर पुराने जहाजों को तोड़ने का काम किया जाता है। ये दुनिया के सबसे बड़े शिपब्रेकिंग यार्ड्स में से एक है। यहां लोहे को पिघलाकर स्टील बनाया जाता है, जो काफी सस्ता होता है। यहीं पर यूरोप की मरीनटाइम कंपनियां अपनी खराब हो चुके शिप को छोड़ रही हैं।

HRW के मुताबिक, यूरोपीय कंपनियों ने सीताकुंड तट पर 2020 से अब तक 520 जहाज छोड़े हैं। यहां हजारों वर्कर्स बिना प्रोटेक्टिव गियर के इन जहाजों को तोड़ते हैं। HRW रिसर्चर जूलीया ब्लेक्नर का कहना है कि यार्ड्स में जहाजों को कबाड़ में बदलने वाली बांग्लादेशी कंपनियां लोगों के जीवन और पर्यावरण की परवाह किए बिना सिर्फ प्रोफिट के बारे में सोच रही हैं।

शिपब्रेकिंग यार्ड में मजदूर बिना सेफ्टी गियर के काम करते दिख रहे हैं।

शिपब्रेकिंग यार्ड में मजदूर बिना सेफ्टी गियर के काम करते दिख रहे हैं।

मजदूर मुंह पर कपड़ा बांधकर काम करते हैं
अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, सीताकुंड शिपब्रेकिंग यार्ड में काम करने वाले मजदूरों ने HRW को बताया कि शिपब्रिकिंग यार्ड में किसी तरह की सुविधा नहीं मिलती।

मजदूर पिघलते हुए लोहे से जले न इसलिए हाथों में मोजे पहन लेते और नंगे पैर काम करते हैं। जहाजों को तोड़ते समय निकलने वाली जहरीली हवा से बचने के लिए मुंह पर शर्ट बांध लेते हैं।

उन्होंने बताया कि कई बार लोहे के टुकड़ों से चोट लग जाती है और कई बार तो वो शिप में लगे पाइप फटने से वो अंदर ही फंस जाते हैं। बावजूद इसके उन्हें सेफ्टी गियर नहीं दिए जाते।

पिछले हफ्ते शिप से गिरकर दो मजदूरों की मौत हुई थी
इन्वायरमेंट ग्रुप यंग पावर इन सोशल एक्शन के मुताबिक, सीताकुंड शिपब्रेकिंग यार्ड में 2019 से अब तक 62 मजदूरों की मौत हो चुकी है। न्यूज एजेंसी AFP के मुताबिक, पिछले हफ्ते शिप को तोड़ते समय दो मजदूर उससे गिर गए थे। दोनों की मौत हो गई थी।

110 में से 33 मजदूरों के फेंफड़े खराब
OSHE फाउंडेशन चैरिटी के डायरेक्टर रिपुन चौधरी ने कहा- हमारे ऑर्गेनाइजेशन ने शिपब्रेकिंग यार्ड के 110 मजदूरों की हेल्थ को स्टडी किया। इसमें सामने आया कि 33 मजदूर किसी तरह के जहरीले पदार्थ के संपर्क में आए थे। इन सभी के फेंफड़ों में डैमेज पाया गया। उन्होंने कहा- 33 में 3 मजदूरों की मौत हो गई, बाकी तकलीफ में जीवन जी रहे हैं।

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