Canada general elections voting result mark carney Pierre Poilievre | कनाडा में आम चुनाव के लिए वोटिंग खत्म: PM कार्नी की लिबरल पार्टी को बढ़त, जीतने की संभावना; बहुमत मिलने पर सवाल

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ओटावा31 मिनट पहले

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पीएम मार्क कार्नी ने चुनाव में अपना वोट डाला।

कनाडा में सोमवार शाम से आम चुनाव के लिए वोटिंग लगभग पूरी हो गई है। शुरुआती नतीजों में पीएम मार्क कार्नी की लिबरल पार्टी के जीत लगभग तय हो गई है।

कनाडा के नेशनल ब्रॉडकास्टर CBC के मुताबिक, लिबरल पार्टी को पर्याप्त सीटें मिलने की संभावना है। हालांकि पार्टी 172 सीटों का बहुमत हासिल कर सकेगी या नहीं, ये अभी नहीं कहा जा सकता है।

यह चुनाव ऐसे वक्त पर हुए हैं जब कनाडा अपने पड़ोसी अमेरिका के साथ टैरिफ वॉर में उलझा हुआ है। इस चुनाव का आधिकारिक रिजल्ट 30 अप्रैल या 1 मई को आएगा।

वैसे तो कनाडा में आधिकारिक तौर अक्टूबर 2025 को चुनाव होने थे, लेकिन प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने पिछले महीने यह कह कर नए चुनाव का ऐलान किया था कि उन्हें ट्रम्प से निपटने के लिए मजबूत जनादेश चाहिए।

2015 से कनाडा के प्रधानमंत्री रहे जस्टिन ट्रूडो ने इस साल की शुरुआत में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद मार्क कार्नी को नया प्रधानमंत्री चुना गया था।

कनाडा में प्रधानमंत्री का कार्यकाल 5 साल का होता है, लेकिन बहुतम खो देने पर या फिर पीएम चाहे तो समय से पहले संसद भंग कर नए चुनाव का ऐलान कर सकते हैं। कार्नी ने ऐसा ही किया।

लिबरल पार्टी को 189 सीटें मिलने का अनुमान मेनस्ट्रीट रिसर्च के मुताबिक लिबरल लगभग 189 सीटें जीत सकती है, उसके सरकार बनाने की संभावना 70% तक है। दूसरी तरफ कंजर्वेटिव पार्टी भी अपने पिछले प्रदर्शन से और ज्यादा बेहतर रिजल्ट हासिल कर सकती है। हालांकि क्यूबेक और NDP दोनों की सीटें कम हो सकती हैं।

लिबरल और कंजर्वेटिव पार्टी में मुख्य मुकाबला

लिबरल पार्टी: लिबरल पार्टी की स्थापना 1867 में हुई थी। यह कनाडा की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टियों में से एक है। लिबरल पार्टी प्रगतिशील विचारधारा का समर्थन करती है। इसका जोर उदारवाद, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक कल्याण जैसे मुद्दों पर रहता है।

हालांकि बीते कुछ वक्त में मंहगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों की वजह से लिबरल सरकार की आलोचना हो रही है। ट्रूडो 2015 से 2025 तक इसी पार्टी से प्रधानमंत्री रहे थे। पिछले आम चुनाव में लिबरल पार्टी को 153 सीटें मिली थी और वो बहुमत से 17 सीटें पीछे रह गई थी, जिसके बाद इसने न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थन से सरकार चलाई थी।

मार्क कार्नी ने 14 मार्च को कनाडा के 24वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी।

मार्क कार्नी ने 14 मार्च को कनाडा के 24वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी।

कंजर्वेटिव पार्टी: कंजर्वेटिव पार्टी कनाडा की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों में से एक है। यह राइट विंग विचारधारा का समर्थन करती है। 2003 में प्रोग्रेसिव कंजर्वेटिव पार्टी और कैनेडियन अलायंस के विलय के बाद इस पार्टी का गठन हुआ था। इसकी जड़ें 19वीं सदी की पुरानी कंजर्वेटिव पार्टियों से जुड़ी हैं।

यह पार्टी आर्थिक उदारवाद, सीमित सरकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, और पारंपरिक मूल्यों पर जोर देती है। पियरे पॉलिवर सितंबर 2022 से कंजर्वेटिव पार्टी के नेता हैं।

कंजर्वेटिव पार्टी वर्तमान लिबरल सरकार की आर्थिक प्रबंधन और कार्बन टैक्स नीतियों की आलोचना करती है। पिछले चुनाव में इस पार्टी को 120 सीटें मिली थी।

क्यूबेक और NDP के लिए मुश्किल मुकाबला

क्यूबेक पार्टी: 1991 में प्रोग्रेसिव कंजर्वेटिव और लिबरल पार्टी से अलग हुए सांसदों ने क्यूबेक पार्टी की स्थापना की थी। यह पार्टी पर्यावरण, LGBTQ+ अधिकार और गर्भपात अधिकार जैसे मुद्दों का समर्थन करती है। 2021 के आम चुनाव में इसने 33 सीटें जीतीं थीं, जिससे यह हाउस ऑफ कॉमन्स (कनाडाई संसद का निचला सदन) में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी। हालांकि इस बार इसकी सीटें घट सकती है।

न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी: न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) की स्थापना 1961 में हुई थी। वर्तमान में सिख सांसद जगमीत सिंह इस पार्टी के लीडर हैं। यह सामाजिक न्याय, लेबर राइट्स, आर्थिक समानता, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक कल्याण पर जोर देती है।

2021 के संघीय चुनाव में NDP ने 25 सीटें जीतीं, जिससे यह हाउस ऑफ कॉमन्स में चौथी सबसे बड़ी पार्टी बनी। पिछले चुनाव में बहुतम नहीं मिलने पर लिबरल पार्टी ने NDP के समर्थन से ही सरकार चलाई थी, लेकिन इस बार चुनाव से पहले हुए रिसर्च में NDP की सीटें घटने का अनुमान लगाया गया है।

प्रधानमंत्री पद के प्रमुख दावेदार…

लिबरल पार्टी से मार्क कार्नी

मार्क कार्नी ने 9 फरवरी को लिबरल पार्टी के नेता का चुनाव जीता था। कार्नी को 85.9% वोट मिले। उन्होंने कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की जगह सत्ता संभाली थी। मार्क कार्नी इकोनॉमिस्ट और पूर्व केंद्रीय बैंकर हैं। कार्नी को 2008 में बैंक ऑफ कनाडा का गवर्नर चुना गया था।

कनाडा को मंदी से बाहर निकालने के लिए उन्होंने जो कदम उठाए, उसकी वजह से 2013 में बैंक ऑफ इंग्लैंड ने उन्हें गवर्नर बनने का प्रस्ताव दिया। बैंक ऑफ इंग्लैंड के 300 साल के इतिहास में वे पहले ऐसे गैर ब्रिटिश नागरिक थे, जिन्हें यह जिम्मेदारी मिली। वे 2020 तक इससे जुड़े रहे। ब्रेग्जिट के दौरान लिए फैसलों ने उन्हें ब्रिटेन में मशहूर बना दिया।

कंजर्वेटिव पार्टी से पियरे पॉलिवर

अगर कनाडा के संसदीय चुनाव में कंजर्वेटिव पार्टी जीतती है तो पियरे पॉलिवर कनाडा के प्रधानमंत्री बन सकते हैं। पियरे पॉलिवर ने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलगरी से इंटरनेशनल रिलेशन में डिग्री हासिल की है। वे धाराप्रवाह फ्रेंच और अंग्रेजी बोलते हैं।

पियरे पॉलिवर 2013-2015 तक प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर की कंजर्वेटिव सरकार में रोजगार और सामाजिक विकास मंत्री और लोकतांत्रिक सुधार राज्य मंत्री रह चुके हैं।

पियरे पॉलिवर ने खालिस्तान के मुद्दे पर भारत के साथ तनाव को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की निंदा की थी। इसके अलावा 2023 में कनाडा की संसद में नाजी सैनिक के सम्मान के मामले में भी पियरे ने ट्रूडो पर तंज कसा था।

पियरे पॉलिवर 2013 से 2015 तक कनाडा सरकार में मंत्री रह चुके हैं।

पियरे पॉलिवर 2013 से 2015 तक कनाडा सरकार में मंत्री रह चुके हैं।

न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) से जगमीत सिंह जगमीत सिंह 2017 से NDP के चीफ हैं। वे किसी कनाडाई पार्टी की कमान संभालने वाले पहले नेता हैं। उनका जन्म 1979 में कनाडा के ओंटारियो में हुआ था। उनके माता-पिता बेहतर जीवन की तलाश में पंजाब से कनाडा चले गए थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक जगमीत 2011 में संसद के सदस्य बने।

जगमीत सिंह को 2013 में भारत ने वीजा देने से इनकार कर दिया था। उन पर भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने और कट्टरपंथियों के साथ संबंध रखने का आरोप था।

वीजा रद्द होने के बाद जगमीत सिंह ने आरोप लगाया कि 1984 से सिख विरोधी दंगे के पीड़ितों के लिए आवाज उठाने की वजह से सरकार उनसे नाराज थी। उन्होंने दावा किया था कि उन्हें पंजाब में ‘सिख ऑफ द ईयर’ से सम्मानित करने के लिए बुलाया गया था।

कनाडाई वेबसाइट ग्लोब एंड मेल के मुताबिक जगमीत सिंह ने जून 2015 में खालिस्तान के समर्थन में सैन फ्रांसिस्को में एक रैली में भाग लिया था। उन्हें भिंडरावाला के पोस्टर के साथ मंच पर बोलते सुना गया। इस दौरान जगमीत ने भारत सरकार पर सिखों के नरसंहार का आरोप लगाया था।

जगमीत सिंह पर खालिस्तानी विचारधारा को समर्थन देने का आरोप लगता रहा है। तस्वीर 2015 की है, जिसमे उनके मंच पर खालिस्तानी झंडा लहराया गया था।

जगमीत सिंह पर खालिस्तानी विचारधारा को समर्थन देने का आरोप लगता रहा है। तस्वीर 2015 की है, जिसमे उनके मंच पर खालिस्तानी झंडा लहराया गया था।

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