akhilesh yadav mayawati lalu yadav and nitish kumar same voice on women reservation bill – India Hindi News

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महिला आरक्षण बिल को केंद्र सरकार ने ‘नारी शक्ति वंदन’ के नाम से लोकसभा में पेश कर दिया है। इस बिल में महिलाओं को लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण का प्रावधान रखा गया है। यही नहीं एससी और एसटी कोटे से ही उस समाज की महिलाओं को भी 33 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान है। लेकिन संग्राम ओबीसी वर्ग को लेकर छिड़ गया है। समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, जेडीयू के नीतीश कुमार और आरजेडी के लालू यादव ने यह मांग उठा दी है। मायावती ने भी अखिलेश जैसी बात करते हुए सबसे पहले कहा कि इस बिल में पिछड़ा, अल्पसंख्यक के बारे में कुछ नहीं कहा गया है।

यही नहीं उन्होंने कहा कि महिलाओं के लिए आरक्षण तो 50 फीसदी का होना चाहिए। बता दें कि यूपीए सरकार के दौर में भी आरजेडी, जेडीयू और सपा ने महिला आरक्षण बिल का ओबीसी के मुद्दे पर ही विरोध किया था और बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया जा सका था। अब एक बार फिर से इन 4 दलों ने विरोध के स्वर उठाए हैं। अखिलेश यादव ने कहा कि इस बिल में स्पष्ट होना चाहिए कि अल्पसंख्यक, पिछड़ा और दलित समुदाय की महिलाओं के लिए क्या प्रावधान हैं। आखिर लैंगिक न्याय के साथ ही सामाजिक न्याय का प्रश्न भी हल होना चाहिए। हालांकि पार्टी बिल को लेकर सावधानी भी बरत रही है और विरोध करने जैसी बात से बच रही है।

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सपा के पूर्व सांसद और अखिलेश के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव ने कहा, ‘यह धारणा गलत है कि सपा विरोध कर रही है। हमने हमेशा सैद्धांतिक तौर पर इसका समर्थन किया है, लेकिन जिस स्वरूप में आया है, उसके पक्ष में नहीं हैं। यहां तक कि यूपी में भी हमने महिलाओं को अवसर दिए हैं। हालांकि हम ऐसा बिल चाहते हैं, जिसमें अल्पसंख्यक, दलित, पिछड़ा समेत सभी वर्गों की महिलाओं को मौका मिलने की बात हो।’ उन्होंने कहा कि हमने कभी महिला आरक्षण का विरोध नहीं किया था और आज भी नहीं करते। बस मौजूदा ड्राफ्ट के पक्ष में नहीं हैं। 

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जेडीयू ने भी ऐसी ही लाइन ली है और कहा कि यह चुनावी जुमला है। जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा, ‘हम तो देशव्यापी जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं। यदि आबादी के अनुपात में आरक्षण नहीं मिलता है तो क्या फायदा होगा। आरक्षण पिछड़े समुदायों को बढ़ाने के लिए होता है। जैसे ओबीसी और ईबीसी की अच्छी आबादी है। हम चाहते हैं कि जातीय जनगणना हो और उसके हिसाब से आरक्षण का नियम तैयार किया जाए। आखिर इस वक्त महिला आरक्षण बिल क्यों आया है। यह चुनावी जुमला ही तो है।’

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वहीं आरजेडी के मनोज झा ने कहा कि हमने तो पहले भी महिला आरक्षण पर चिंता जाहिर की थी। यदि बिल महिलाओं को लोकतंत्र में मजबूत करता है तो अच्छी बात है, लेकिन इसमें सामाजिक न्याय की भी बात हो। इस बिल में स्पष्टता का अभाव है। हमारा यूपीए के दौर में भी यह था कि सभी वर्गों की महिलाओं के सशक्तिकरण की बात की जाए। आज भी हम अपनी ही बात पर कायम हैं। 

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