Supreme Court Vs Refugee; Sri Lankan Tamil Detention Case | LTTE | सुप्रीम कोर्ट बोला- भारत धर्मशाला नहीं: जो हर किसी को शरण दे; श्रीलंकाई तमिल नागरिक ने जान का खतरा बताकर पनाह मांगी थी

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नई दिल्ली11 मिनट पहले

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सुप्रीम कोर्ट ने श्रीलंकाई शरणार्थी से जुड़े एक मामले में सोमवार को कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है। दुनियाभर से आए शरणार्थियों को भारत में शरण क्यों दें? जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने यह टिप्पणी श्रीलंका के एक नागरिक की याचिका खारिज करते हुए की।

दरअसल, मद्रास हाईकोर्ट ने श्रीलंकाई नागरिक को UAPA मामले में 7 साल की सजा पूरी होते ही तुरंत भारत छोड़ देने का आदेश दिया था। इसके खिलाफ उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर हस्तक्षेप करने की मांग की थी।

याचिकाकर्ता की तरफ से आर. सुधाकरन, एस. प्रभु रामसुब्रमण्यम और वैरावन एएस ने कोर्ट में दलील दी।

याचिकाकर्ता श्रीलंका में वांछित व्यक्ति घोषित

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह वीजा लेकर भारत आया है। श्रीलंका में उसकी जान को खतरा है। उसकी पत्नी और बच्चे भारत में बसे हैं, और वह तीन साल से हिरासत में है, लेकिन निर्वासन की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई।

याचिकाकर्ता ने बताया कि वह 2009 में श्रीलंकाई युद्ध में LTTE के सदस्य के रूप में लड़ा था, इसलिए श्रीलंका में उसे ‘ब्लैक-गजटेड’ (वांछित) घोषित किया गया है। अगर उसे वापस भेजा गया, तो उसे गिरफ्तारी और यातना का सामना करना पड़ सकता है। उसने यह भी कहा कि उसकी पत्नी कई बीमारियों से पीड़ित है और उसका बेटा जन्मजात हृदय रोग से जूझ रहा है।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या शरणार्थियों के डिपोर्टेशन में भी हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था।

समझें पूरा मामला

यह केस एक श्रीलंकाई तमिल नागरिक का है, जिसे 2015 में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) से जुड़े होने के शक में तमिलनाडु पुलिस की Q ब्रांच ने दो अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया था।

LTTE पहले श्रीलंका में सक्रिय एक आतंकी संगठन था। 2018 में एक निचली अदालत ने याचिकाकर्ता को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत 10 साल की सजा सुनाई थी।

2022 में मद्रास हाई कोर्ट ने सजा को सात साल कर दिया और कहा कि सजा पूरी होने के बाद उसे देश छोड़ना होगा और निर्वासन से पहले शरणार्थी कैंप में रहना होगा।

कोर्ट रूम LIVE

सुप्रीम कोर्ट: ‘क्या भारत को दुनिया भर के शरणार्थियों को रखना चाहिए? हमारे पास 140 करोड़ लोग हैं, यह कोई धर्मशाला नहीं है कि हम हर विदेशी को जगह दें।’

याचिकाकर्ता: ‘संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा) और अनुच्छेद 19 (मौलिक अधिकार, जैसे बोलने और घूमने की आजादी) के तहत दलील दी।’

जस्टिस दत्ता, ‘उसकी हिरासत अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं करती, क्योंकि उसे कानून के तहत हिरासत में लिया गया। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 19 केवल भारतीय नागरिकों के लिए है।’

सुप्रीम कोर्ट: ‘आपका यहां बसने का क्या अधिकार है?” जब वकील ने कहा कि वह शरणार्थी है और श्रीलंका में उसकी जान को खतरा है, तो कोर्ट ने सुझाव दिया कि वह किसी और देश में जाए।’

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