41 years spotless…1 death put a lock | संजय गांधी अस्पताल बंद…रोज निराश लौट रहे 600 से ज्यादा मरीज; 450 कर्मचारियों को नौकरी जाने का डर

अमेठी2 घंटे पहलेलेखक: देवांशु तिवारी / राजेश साहू

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एक सवाल…? किस हॉस्पिटल में मौत नहीं होती? हर व्यक्ति का जवाब होगा, ‘हर हॉस्पिटल में ऐसा होता है।’ यही हाल अमेठी के संजय गांधी हॉस्पिटल का है। 14 सितंबर को यहां एक महिला मरीज भर्ती हुई। ऑपरेशन थिएटर में ले जाया गया तो वहां हालत खराब हो गई। लखनऊ रेफर किया गया, जहां मरीज की मौत हो गई।

सरकार ने हॉस्पिटल को नोटिस दिया। हॉस्पिटल कुछ सोच पाता कि उसे सील करने का आदेश भी आ गया। जिस मरीज की मौत हुई उनके परिजन कहते हैं कि जो दोषी हो उनके खिलाफ कार्रवाई हो। लेकिन हम यह नहीं चाहते हैं कि हॉस्पिटल बंद हो।

कुल मिलाकर हॉस्पिटल पर तालेबंदी का यह मामला पूरी तरह से राजनीतिक हो गया है। इस एक फैसले से हजारों मरीज, सैकड़ों कर्मचारी बेबस हैं। हॉस्पिटल में पढ़ने वाले 800 स्टूडेंट्स प्रैक्टिकल को लेकर परेशान हैं। स्थानीय नेता धरने पर हैं। कुल मिलाकर सभी इस फैसले के खिलाफ दिखे। दैनिक भास्कर की टीम हॉस्पिटल पहुंची और पूरे मामले को वहीं के स्टाफ से समझा। आइए सबकुछ एक तरफ से पढ़ते हैं…

पेट में पथरी थी इसलिए ऑपरेशन करवाने हॉस्पिटल पहुंचे
दिव्या शुक्ला की करीब दो साल पहले रामशाहपुर के अनुज शुक्ला से शादी हुई थी। शादी के एक साल बाद दिव्या ने एक बेटे को जन्म दिया। नाम रखा अन्मेश शुक्ला। दिव्या हमेशा खुश रहती थीं लेकिन कभी-कभी उनके पेट में अचानक तेज दर्द उठता। पति उन्हें मुंशीगंज के संजय गांधी हॉस्पिटल ले गए। जहां जांच होने पर पता चला कि किडनी में पथरी है। परिवार ने फैसला किया कि यहीं ऑपरेशन करवाया जाएगा। 13 सितंबर को जांच पूरी हुई और 14 तारीख को भर्ती के लिए बुलाया गया।

10 महीने पहले दिव्या ने बेटे को जन्म दिया था। अस्पताल में भर्ती होने से पहले वह स्वस्थ्य थी।

10 महीने पहले दिव्या ने बेटे को जन्म दिया था। अस्पताल में भर्ती होने से पहले वह स्वस्थ्य थी।

तय समय पर अनुज अपनी पत्नी और बच्चे को लेकर हॉस्पिटल पहुंचे। वहां भर्ती किया। डॉक्टर मो. रजा को ऑपरेशन करना था। उसके पहले एनेस्थीसिया टीम ने दिव्या को बेहोशी का इंजेक्शन लगाया। इसके बाद उनकी हालत खराब हो गई। तुरंत आईसीयू में भर्ती किया गया। जहां रजा ने देखा तो कहा कि ऑपरेशन करने की स्थिति नहीं है।

इसके बाद फिजीशियन डॉक्टरों ने इलाज शुरू किया। लेकिन हालत में सुधार नहीं हुआ। तुरंत लखनऊ के मेदांता हॉस्पिटल के लिए रेफर कर दिया। जहां 16 सितंबर को दिव्या की मौत हो गई। दिव्या की मौत के बाद परिजनों ने संजय गांधी हॉस्पिटल में हंगामा कर दिया।

डॉक्टरों पर लापरवाही का आरोप लगाया। हॉस्पिटल के सीईओ अवधेश शर्मा, सर्जन मोहम्मद रजा, एनेस्थीसिया विशेषज्ञ डॉक्टर सिद्दीकी और डॉक्टर शुभम द्विवेदी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। मामला राजधानी लखनऊ तक पहुंच गया। डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक ने हॉस्पिटल को कारण बताओ नोटिस जारी किया। नोटिस जारी किए हुए 1 दिन भी नहीं बीता कि ब्रजेश पाठक ने हॉस्पिटल को सील करने का आदेश दे दिया।

  • हॉस्पिटल सील होने से यहां काम करने वाले 450 कर्मचारी अचानक बेरोजगार हो गए। उन कर्मचारियों ने अपना दुख हमें बताया।

हमारे सामने घर चलाने का संकट आ गया
हम हॉस्पिटल पहुंचे तो हमें गेट पर चुन्नीलाल मिले। चुन्नीलाल पिछले 42 साल से हॉस्पिटल में साफ-सफाई का काम देखते हैं। हॉस्पिटल के सील करने से निराश हैं। कहते हैं, “हमारे साथ 28 और लोग सफाई का काम देखते हैं, सब घर चले गए हैं। आज से पहले कभी भी यह हॉस्पिटल बंद नहीं हुआ। हमेशा खुला रहा।”

अस्पताल बंद होने के बाद 28 में से 20 सफाईकर्मियों को छुट्टी दे दी गई है। चुन्नीलाल अपनी व्यथा बताते-बताते रो पड़े।

अस्पताल बंद होने के बाद 28 में से 20 सफाईकर्मियों को छुट्टी दे दी गई है। चुन्नीलाल अपनी व्यथा बताते-बताते रो पड़े।

उमेंद्र तिवारी यहां पिछले सात साल से एंट्री का काम देखते हैं। उनके पिता भी यहां 30 सालों तक सुरक्षा के काम देखते रहे। उमेंद्र कहते हैं, “इस पूरे मामले में राजनीति हो रही है। बीजेपी वाले राजनीति कर रहे हैं। किस हॉस्पिटल में मौत नहीं होती। जीना-मरना तो डॉक्टर के हाथ में नहीं होता, वह तो इलाज करता है, वह नहीं चाहते कि मरीज की मौत हो।” हमने पूछा कि कौन राजनीति कर रहा है, उमेंद्र कहते हैं- यहां की सांसद महोदया स्मृति ईरानी जी कर रही हैं। वह नहीं चाहतीं कि हॉस्पिटल चले, क्योंकि यह गांधी परिवार का है।

एशिया में ग्रामीण लेवल पर इससे बड़ा कोई हॉस्पिटल नहीं
मुंशीगंज के इस संजय गांधी हॉस्पिटल का शिलान्यास 1982 में पीएम रहीं इंदिरा गांधी ने किया था। जैसे समय बीता वैसे-वैसे इस हॉस्पिटल की सुविधा बढ़ती चली गई। इस वक्त इस हॉस्पिटल में 350 बेड हैं। डायलिसिस सेंटर है। ब्लड बैंक है। 4 ऑपरेशन थिएटर हैं। हर दिन यहां कम से कम 600 से ज्यादा मरीज ओपीडी में आते हैं। उसमें जिसकी हालत खराब दिखती है उसे भर्ती कर लिया जाता है। रात में कोई दुर्घटना होती है तो लोग जिला अस्पताल जाने के बजाय संजय गांधी हॉस्पिटल में आते हैं।

अब सवाल है कि जिला अस्पताल में क्यों नहीं जाते?
इसके जवाब में यहां के लोग कहते हैं कि जिला अस्पताल की हालत ठीक नहीं है। वहां के मुकाबले यहां बेहतर इलाज मिलता है। कम पैसे में जांच होती है। इमरजेंसी की सुविधा संजय गांधी हॉस्पिटल में वहां से ज्यादा अच्छी है। यहां के डॉक्टर अच्छे हैं इसलिए न सिर्फ आसपास के लोग बल्कि अन्य जिलों से भी लोग यहां इलाज करवाने आते हैं। एशिया में ग्रामीण स्तर पर इससे बड़ा हॉस्पिटल कहीं भी नहीं है।

संजय गांधी हॉस्पिटल में 600 नर्सिंग स्टूडेंट्स और 200 पैरामेडिकल स्टूडेंट्स पढ़ाई करते हैं। मेडिकल की पढ़ाई में प्रैक्टिकल का रोल सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। ऐसे में हॉस्पिटल बंद होने से उन छात्रों के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग गया है।

छात्र कैमरे के सामने बात करने से बचते हैं। वह कहते हैं, “जब से यहां स्मृति ईरानी सांसद बनी हैं तभी से इस संस्थान को बंद करवाने की तरकीबें खोज रही थीं। वह एक बार भी इस हॉस्पिटल में नहीं आईं। अब तक इस हॉस्पिटल को मेडिकल कॉलेज बनाया जा सकता था, लेकिन राजनीति के चलते ऐसा नहीं हो पा रहा।”

स्मृति ईरानी ने कहा- कांग्रेस को अपने मुनाफे की चिंता
इस मामले पर सबसे ज्यादा उंगली अमेठी की सांसद स्मृति ईरानी पर उठी। कहा गया कि उनके कहने पर ही हॉस्पिटल सील किया गया। 25 सितंबर को वह लखनऊ में थीं। हॉस्पिटल के सील करने के सवाल पर उन्होंने कहा, “गांधी खानदान की ओर से चलाए जा रहे हॉस्पिटल में एक महिला की मौत होती है, उसका सहारा बनने के बजाय अपने मुनाफे को लेकर रो रहे हैं। उनकी नजर में एक महिला की जान की कीमत ही नहीं।”

अब सवाल है कि क्या स्मृति ईरानी को उस महिला व उसके बच्चे की चिंता है? इसके लिए हमने पीड़ित परिवार से बात की। मृतका दिव्या शुक्ला के पति अनुज कहते हैं, “हमारे पास कोई नहीं आया। मेरा 10 महीने का बच्चा बिना मां के हो गया। किसी को कोई फिक्र नहीं है। प्रशासन, सरकार या फिर किसी और की तरफ से हमें कोई भी आर्थिक मदद नहीं मिली। कम से कम बच्चे का तो ख्याल रखना था।”

  • पीड़ित परिवार न्याय और मदद चाहता है। हॉस्पिटल बंद करने के पक्ष में नहीं है।

अमेठी कांग्रेस और हॉस्पिटल कर्मचारियों ने खोला मोर्चा
अवधेश तिवारी हॉस्पिटल की मार्केटिंग टीम में हैं। वह कहते हैं, “सांसद महोदया और ब्रजेश पाठक जी राजनीति कर रहे हैं। सांसद महोदया रोजगार की बात करती हैं, लेकिन 450 कर्मचारियों को एक झटके में बेरोजगार कर दिया। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि क्या करें। यहां तो बीजेपी के लोग भी इलाज करवाने आते हैं। जात-पात से ऊपर उठकर यहां इलाज किया जाता है। अगर उन्हें गांधी परिवार से ईर्ष्या थी तो कोई बात नहीं, लेकिन बाकी लोगों के साथ ऐसा क्यों कर रही हैं।”

फिलहाल, कांग्रेस के नेताओं और हॉस्पिटल के कर्मचारियों ने सरकार के इस फैसले के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कांग्रेस के पूर्व एमएलसी दीपक सिंह अपने 100 से ज्यादा समर्थकों के साथ सीएमओ ऑफिस के बाहर अनशन पर बैठ गए हैं। वहीं हॉस्पिटल के डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टॉफ और कर्मचारियों ने भी सत्याग्रह का मार्ग अपनाया है। उनका कहना है कि अभी सत्याग्रह कर रहे हैं, अगर निलंबन रद्द नहीं होता तो भूख-हड़ताल के लिए बाध्य होंगे।

  • आखिर में उस नेता की बात जिनके पिता के नाम पर यह अस्पताल चल रहा है…

भाजपा नेता वरुण गांधी ने भी संजय गांधी अस्पताल को लेकर एक समाचार चैनल पर बात रखी। वरुण ने कहा कि वह अपने पिता के नाम पर बने अमेठी के संजय गांधी अस्पताल से भावनात्मक रूप से जुड़े हो सकते हैं, लेकिन इसका न्याय के लिए निष्पक्ष जांच की उनकी मांग से कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि गरीबों की सेवा करने वाली संस्था बनाने में पीढ़ियां लग जाती हैं।

“मैं कहना चाहूंगा कि उत्तर प्रदेश में हर एक स्वास्थ्य संस्थान में ऐसी घटनाएं लगभग हर दिन होती हैं। मेरा निवेदन है कि आपको ओवरहालिंग पर ध्यान देना चाहिए, आपको जवाबदेही पर ध्यान देना चाहिए, आपको दोषियों को दंडित करने पर ध्यान देना चाहिए।”

“मैं उस प्रक्रिया के खिलाफ नहीं हूं। मेरा सीधा सा कहना यह है कि दोषी व्यक्ति को सजा देने से एक सकारात्मक संदेश जाता है। लेकिन जब आप एक पूरे संस्थान को बंद करने पर विचार करते हैं जिसे पुनर्निर्माण में एक पीढ़ी लग जाएगी। वे लोग किसी भी बुनियादी ढांचे से पूरी तरह वंचित हो जाएंगे।”

आखिर में ग्राफिक के जरिए संजय गांधी हॉस्पिटल में मौजूद सुविधाओं के बारे में जान लेते हैं…

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