सगाई होते ही चल बसा होने वाला पति, ताउम्र रही कुंवारी, विधवा की तरह जी जिदंगी

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ये कहानी है मन मोह लेने वाली एक्ट्रेस की. जिनके साथ कई सुपरस्टार्स की जोड़ी बनीं. करियर में खूब नाम कमाया, मगर जब बारी आती है इनकी पर्सनल लाइफ की तो वो सिर्फ दुख, दर्द और तन्हाई से भरी थी. सोचिए, उस औरत की पूरी जिंदगी कैसी बीती होगी जिसकी शादी से पहले ही मांग सूनी हो गई हो. जी हां, इस एक्ट्रेस की सगाई तो हो गई थी लेकिन शादी से पहले ही मंगेतर की मौत हो गई और ये हीरोइन पूरी जिंदगी विधवा की तरह जीवन जीती रही. अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इतना नाम कमाने वाली एक्ट्रेस की निजी जिंदगी में कितना सूनापन था.

ये कोई और नहीं बल्कि शोर जैसी हिट फिल्म में मनोज कुमार की हीरोइन रहीं नंदा की है. उन्होंने बॉलीवुड करियर में 70 से ज्यादा फिल्में दीं. खूब सुंदर और दमदार अंदाज वाली महिला थीं. उन्हें दिलीप कुमार की पत्नी सायरा बानो भी खूब मानती थीं. वह कहती थीं, नंदा उनके लिए उनके परिवार के सदस्य की तरह थीं. मालूम हो, अब नंदा इस दुनिया में नहीं है, 75 साल की उम्र में 25 मार्च 2014 को मुंबई में उनका निधन हो गया.

नंदा का असली नाम, जन्म, पहचान

नंदा का असली नाम नंदिनी कर्नाटकी था. जिनका जन्म 8 जनवरी 1939 में हुआ. उन्हें नंदा के नाम से पहचान मिली. उन्होंने हिंदी के अलावा मराठी फिल्मों में भी काम किया. वह एक महाराष्ट्र की फैमिली से आती हैं जिनके पिता मराठी एक्टर-फिल्ममेकर हुए. उनके भाई भी इंडस्ट्री का हिस्सा हुए लेकिन एक्टर के तौर पर नहीं सिनेमटौग्राफर के तौर पर. उनके परिवार का कनेक्शन डायरेक्टर वी. शांताराम से भी है. वह रिश्ते में उनके चाचा लगते हैं. जब नंदा सात साल की थीं तो उनके पिता का निधन हो गया और परिवार काफी मुश्किल वक्त से बीता. ऐसे में वह चाइल्ड एक्ट्रेस फिल्मों में काम करने लगीं और फिल्मों से जो पैसे कमातीं उससे परिवार को मदद मिलती.

नंदा की फिल्में और कामकाज
नंदा ने डेब्यू किया था 1948 में आई फिल्म मंदिर से. आगे चलकर उन्होंने साल 1948 से 1956 तक बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट काम किया. फिर उनके चाचा और फेमस फिल्ममेकर वी. शांताराम ने उन्हें बड़ा ब्रेक किया और साल 1956 की फिल्म तूफान और दीया में कास्ट किया. ये फिल्म भाई बहन की स्टोरी पर बनी थी. आगे चलकर उन्होंने भाभी फिल्म की और इसके लिए उन्हें पहली बार फिल्मफेयर अवॉर्ड बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस के लिए नॉमिनेशन भी मिला. आगे चलकर वह लीड रोल में नजर आने लगीं. उन्होंने छोटी बहन, हम दोनों, कानून, आंचल, जब जब फूल खिले, आशिक,बेटी, इत्तेफाक, शोर, उम्मीद, भाभी, परिणीता, अधिकार मजबूर से लेकर प्रेम रोग जैसी फिल्में कीं. उस वक्त वह हाईएस्ट पेड एक्ट्रेसेज में से एक बन गई थीं. बात करें जब जब फूल खिले की तो इसमें नंदा के साथ शशि कपूर नजर आए थे. ये फिल्म अमीर लड़की और गरीब लड़की की कहानी पर बनी थी.

शम्मी कपूर के जमाई राजा
फिल्मों का करियर तो सुपरहिट रहा ही अब आते हैं नंदा की पर्सनल जिंदगी पर. नंदा को 70 के दशक में आते आते शादीशुदा डायरेक्टर और प्रोड्यूसर से प्यार हो गया. ये कोई और नहीं बल्कि मसाला फिल्मों के किंग माने जाने वाले मनमोहन देसाई थे. जिनकी शादी जीवनप्रभा संग हुई थी. मगर वह अप्रैल 1979 में गुजर गईं. दोनों का एक बेटा भी है केतन देसाई जो फिल्मों में आए. उन्होंने शम्मी कपूर और गीता बाली की बेटी कंचन कंपूर संग शादी की.

वहीदा रहमान ने करवाई थी नंदा-मनमोहन
एक बार नंदा के भाई जयप्रकाश ने नंदा और मनमोहन की लवस्टोरी को लेकर बातचीत की थी. पिंकविला को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि दोनों की लवस्टोरी में वहीदा रहमान की भी भूमिका थी. एक बार दोनों को मिलवाने के लिए उन्होंने एक डिनर प्लान किया. दीदी और मनमोहन जी को अकेला छोड़ दिया ताकि फिलममेकर अपनी दिल की बात नंदा से कह पाए. उसी डिनर नाइट पर डायरेक्टर से कह दिया था कि वह उनसे शादी करना चाहते हैं.

नंदा के लिए आया था रिश्ता
नंदा के भाई ने बताया था कि वो एकदम सिंपल और सादगी तरह से शादी का प्रस्ताव रखा गया था. फिर उनकी दीदी ने सोच विचार किया. एक दिन वहीदा रहमान को फोन किया और नंदा ने इस रिश्ते के लिए हां कह दिया.

सगाई के बाद हो गई मंगेतर की मौत
बस इस तरह से मनमोहन संग नंदा की सगाई तय हुई. नंदा का नेचर काफी शर्मीला किस्म का था. वह काफी प्राइवेट रहना पसंद करती थीं. उन्होंने मनमोहन देसाई संग साल 1992 में सगाई की. मगर उन्होंने सोचा भी नहीं था कि उनकी जिंदगी में पहाड़ टूटने वाला है. वह अपनी शादी को लेकर तरह तरह के सपने संजोए थीं. मगर सगाई के दो साल बाद ही मनमोहन देसाई की मौत हो गई और इस घटना ने नंदा को अंदर तक झकझोर कर रख दिया.

फिर विधवा की तरह जिया जीवन
नंदा के भाई जयप्रकाश ने बताया कि वह मंगेतर की मौत के बाद जीवन भर विधवाओं की तरह जीवन जीने लगी थीं. उस दिन के बाद उन्होंने कभी रंगीन कपड़े नहीं पहने. उन्होंने कहा था, ‘दीदी एकदम टूट गई थीं. उस दिन के बाद उन्होंने कभी भी रंगीन कपड़े नहीं पहने. वह कहती थीं कि मैंने उनको पति मान लिया है. वह हमेशा मेरे पति रहेंगे.’

संन्यासी जैसी जिंदगी
जिंदगी भर नंदा ने खुद को सफेद कपड़ों में कैद कर लिया. जो भी शादी का प्रस्ताव देता उनके सफेद कपड़े ही उनका जवाब होता था. मनमोहन देसाई की मौत के बाद उन्होंने खुद को कैद कर लिया था. वह न किसी से मिलती न जुलती. उन्होंने थिएटर जाना तक छोड़ दिया था. उन्हें कभी डायमंड काफी पसंद थे लेकिन वो इच्छा भीा उनकी मर गई थी. नंदा के भाई के मुताबिक, वह कहा करती थीं, अब क्या रखा है. वह एक संन्यासी की तरह रहती थीं.

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