वो इलाका जिसके लोग मुसलमान नहीं बने तो कहलाने लगा काफिरिस्तान, अब क्या है उसका नाम

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Kafiristan Never Surrender To Muslim Invaders: अफगानिस्तान के प्रांत नूरिस्तान को पहले काफिरिस्तान कहा जाता था. इस पहाड़ी इलाके के बारे में 18वीं सदी के अंत से पहले कम लोग ही वाकिफ थे. साल 1859 तक यह इलाका पूरी तरह से आजाद था और काफिर लोगों का देश कहलाता था. इसका कारण ये था कि आस-पास के इलाकों द्वारा इस्लाम स्वीकार कर लिए जाने के बावजूद यहां के लोग धार्मिक रूप से परिवर्तित होने के लिए तैयार नहीं थे. लेकिन साल 1896 में अफगानिस्तान के शासक अब्दुर रहमान खान ने यहां के लोगों को इस्लाम में परिवर्तित कर दिया. जगह का नाम बदलकर नूरिस्तान कर दिया गया. 

प्रोफेसर नील ग्रीन अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशिया और इस्लामिक इतिहास पढ़ाते हैं. प्रोफेसर नील ग्रीन ने अफगानिस्तान के इस बेहद खूबसूरत इलाके नूरिस्तान के बारे में लिखा है, “और आखिर में काफिरिस्तान को खत्म कर दिया गया. वहां के ज्यादातर निवासियों को इस्लाम धर्म स्वीकार करना पड़ा. इसके लिए दो तरीके इस्तेमाल हुए पहला बल और दूसरा जजिया. जो लोग डराने धमकाने से परिवर्तित नहीं हुए उन पर आर्थिक दंड लगा दिया गया. आखिरकर उन्होंने धर्म परिवर्तन कर लिया. बाद में इस इलाके का नाम नूरिस्तान रख दिया गया.”

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ये है नूरिस्तान का इतिहास
644 ईस्वी में इस इलाके की यात्रा के बाद चीनी यात्री शियानजेंग ने लिखा, “यहां बौद्ध क्षत्रिय राजा का शासन था. इसे कपीश जनपद के नाम से जाना जाता था. यहां के राजा का आस-पास के दस राज्यों पर प्रभाव था. 9वीं सदी तक कपीश काबुल के हिंदू शाही राजवंश का हिस्सा था. इसके बाद यहां इस्लामिक आक्रांताओं के लगातार हमले ने बौद्ध धर्म और हिंदू राजशाही को कमजोर किया. आधुनिक नूरिस्तान से लेकर कश्मीर तक के इलाके को उस समय इस्लामिक आक्रांता पेरिस्तान भी कहा करते थे. इसके आस-पास के इलाके इस्लामिक हमलों के कारण लगातार इस्लाम धर्म स्वीकार करते चले गए. ये सिलसिला 8वीं सदी से लेकर 16वीं सदी तक चलता रहा.”

अब्दुर रहमान खान का हमला
काफिरिस्तान के इस इलाके में लंबे तक हमलों और धर्म परिवर्तन के बावजूद बड़ी संख्या ऐसे लोगों की बच गई थी जो या पुरातन हिंदू धर्म के मानने वाले थे या फिर बौद्ध थे. लेकिन इस पूरे इलाके का इस्लामीकरण किया अफगानिस्तान के शासक अब्दुर रहमान खान ने. अब्दुर रहमान खान को अफगानिस्तान के एकीकरण के लिए भी जाना जाता है. वो वहां के आधुनिक काल के सबसे ताकतवर शासकों में गिने जाते हैं. 19वीं सदी के आखिर में 1895-96 के दौरान अब्दुर रहमान ने इस इलाके पर भीषण हमला करवाया. ताकत और अत्याचार के अलावा जजिया कर का डर दिखाकर बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन कराया गया. अब्दुर रहमान ने ही इस इलाके का नाम काफिरिस्तान से बदलकर नूरिस्तान किया.

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कलश को कहा जाता है काफिर
कहा जाता है उस समय अब्दुर रहमान के हमले के बाद जो लोग भागे वो वर्तमान पाकिस्तान के चित्राल जिले में रहने वाले कलश समुदाय के लोग हैं. इनकी संख्या 20 से 30 हजार के बीच बताई जाती है. आज भी ये समुदाय मुख्यधारा से बिल्कुल अलग रहता है. कलश समुदाय अपनी बिल्कुल अलग जीवन पद्धति के लिए जाना जाता है. आम तौर पर पाकिस्तान में इन्हें आदिवासी समुदाय के तौर पर देखा जाता है. ये वही समुदाय है जो काफिर कहा जाता है. 

अपनी संस्कृति और धर्म बचाए हुए हैं
कलश लोग बकरी पालन करते हैं और जीविका के लिए खेती करते हैं. 1970 के दशक के मध्य में, चित्राल घाटियों में पहली सड़क बनाई गई थी. इसने शिक्षा, सेना और पर्यटन के प्रवेश की अनुमति दी, जिससे क्षेत्र में बड़े सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन हुए. वैसे कलाश, विशेष रूप से सबसे अलग-थलग गांवों में रहते हैं. ये समुदाय अपनी पहचान को लेकर बहुत मजबूत भावना रखता है और अपनी संस्कृति और धर्म की जोरदार रक्षा करता है. पूरा प्रदेश बहुत ही ऊंचा नीचा है. मैदान या समतल क्षेत्र नाममात्र के लिए भी नहीं हैं. सारा पर्वतीय क्षेत्र जंगलों से ढका हुआ है. ढालों पर चरागाह हैं. 

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सिकंदर के वंशज हैं कलश
किंवदंती के अनुसार, कलश की काकेशियाई विशेषताएं, गोरा रंग और हल्की आंखें हैं क्योंकि वे सिकंदर महान के वंशज हैं. उनकी शारीरिक बनावट उनके पश्तून और खो पड़ोसियों से काफी अलग है. आजतक कलश लोगों की उत्पत्ति अज्ञात बनी हुई है. पारंपरिक कलश धर्म बहुदेववादी है. यह प्राचीन हिंदू धर्म की एक शाखा से आता है, जो इस्लाम से पहले के नूरिस्तान के विश्वासों से प्रभावित था. कलश लोग अभी भी विभिन्न धार्मिक प्रथाओं और अनुष्ठानों को जीवित रखते हैं. कई कलश देवताओं के मंदिर और वेदियां घाटी में फैली हुई हैं, जहां नियमित रूप से बकरियों की बलि दी जाती है. 

कौवों को मानते हैं अपना पूर्वज
कलश लोगों का कौवों के साथ गहरा संबंध है, जिन्हें वे अपने पूर्वज मानते हैं. इसलिए वे उनकी देखभाल करते हैं और उन्हें ध्यानपूर्वक खिलाते हैं. मृत्यु को सकारात्मक रूप में देखा जाता है, क्योंकि उनका मानना है कि मृतक की आत्मा शरीर से अलग होकर अपने दिवंगत मित्रों और रिश्तेदारों से मिलने जाएगी. इसलिए वे ताबूतों को खुले में छोड़ देते हैं, ताकि शरीर और आत्मा का अलगाव आसान हो सके. पारंपरिक अंतिम संस्कार बड़े समारोह होते हैं, जिनमें संगीत और नृत्य भी होता है.

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अनूठी संस्कृति और अद्भुत कपड़े
कलश लोग अपनी अनूठी संस्कृति, अनुष्ठानों और अद्भुत कपड़ों के लिए जाने जाते हैं. कलश महिलाएं लंबे काले वस्त्र पहनती हैं जिन पर रंगीन कढ़ाई होती है. वे हेडड्रेस और मोतियों की माला पहनती हैं. कुछ महिलाएं अभी भी अपने गाल, माथे और ठुड्डी पर छोटे टैटू बनवाती हैं. इसके अलावा, वे आमतौर पर अपने बाल बहुत लंबे रखती हैं और उन्हें लंबी चोटियों में बांधती हैं. इसके विपरीत, कलश पुरुषों ने ‘सलवार कमीज’, जो कि पाकिस्तानी राष्ट्रीय पोशाक है, को अपनाया है, जिसे वे वेस्ट के साथ पहनते हैं. वे पारंपरिक उत्तर पाकिस्तानी टोपी भी पहनते हैं. 

भागकर शादी करना आम
कुछ पड़ोसी संस्कृतियों के विपरीत, कलश पुरुष और महिलाएं एक साथ रहते हैं और सार्वजनिक स्थानों पर संपर्क की अनुमति है. कलश घाटी में भागकर शादी करना आम है, खासकर उन महिलाओं के बीच जो पहले से ही किसी अन्य पुरुष से शादीशुदा हैं. इन मामलों में, प्रेमी को न केवल दुल्हन के परिवार को दहेज देना पड़ता है, बल्कि उसे पति को भी वह दहेज लौटाना पड़ता है जो उसने शादी से पहले दिया था.

Tags: Afghanistan news, International news, Islam religion, Muslim Conversion

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